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  • May 09, 2025
  • Productivity

You are destroying your future, by relaxing.

जंक फूड खाना, गेम्स का एडिक्शन, इंस्टाग्राम पर रील बनाने की होड़, तमाम तरह के नशे; ये सब कोई दूसरी दुनिया की बातें नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ये सब हमने पहली बार सुना है। ये सब हमारे घरों में हो रहा है। एक ही घर में ऐसा देखने को मिल सकता है कि माँ दिनभर सोशल मीडिया पर समय बिता रही है, बेटे को पबजी की लत लगी है, बेटी रोज बाहर से बर्गर खाकर आती है, और पिताजी के हाथ से सिगरेट नहीं छूटती। और समय के साथ ये सब इतना नॉर्मलाइज़ कर दिया गया है कि हमें लगता है कि ये तो सामान्य बात है। 


इन सारी समस्याओँ के तरीके भी हम निकालते हैं अपने स्तर पर। बाहर का खाना खाकर अगर वजन बढ जाए तो डाइटिंग कर लेंगे कुछ दिन, जिम चले जाएँगे। इंस्टाग्राम की लत है तो ऐप डिलीट कर देंगे कुछ दिन के लिए। कुछ-न-कुछ सतही उपाय तो आज़माएँगे ही। सबकुछ कर लेंगे पर कुछ क्षण को ठहरकर ये नहीं देखेंगे कि ये समस्याएँ आ कहाँ से रही हैं। हम नहीं जानने चाहते कि मूलभूत वज़ह क्या है इन सब के पीछे। क्यों कॉलेज जाने वाले छात्र घंटों आईपीएल देखते रहते हैं? क्यों दिन की चार या छ: सिगरेट सुलगाई जाती हैं? क्यों हर वीकेंड पर पार्टी के नाम पर व्हिस्की के पैग बनाए जाते हैं? क्यों ज़रा सा खाली वक्त मिलने पर हर इंसान इंस्टाग्राम पर स्क्रोल कर रहा है? क्यों मन करता है रोज़ फास्ट फूड खाने का? वजह क्या है?


आपकी कोई भी इच्छा रैंडम या यूँ ही नहीं है। कुछ वजह है उसके पीछे। अगर ध्यान देंगे तो कुछ समझ में आएगा।  हमारी ज्यादातर इच्छाएँ सामान्यतः हमारे भीतर के खालीपन और ऊब से उठ रही होती हैं। अच्छा, आपने कभी गौर किया है कि दिन के किस समय में हम मन की इन गैर-ज़रूरी इच्छाओं को पूरी कर रहे होते हैं? गौर कीजिएगा, ये अक्सर शाम या रात के समय होता है। पर ऐसा क्यों है? रात को ऐसा क्या खास होता है? ज़रा समझते हैं


अपनी ये सारी गैर-ज़रूरी इच्छाएँ हम पूरी क्यों करते हैं? सुख के लिए, है न? पेट तो दाल-रोटी से भी भर जाता है पर मन को चाहिए होता है न, सुख, खुशी; इसलिए हम पिज्जा या बर्गर खाते हैं। सुख चाहिए क्यों होता अगर दुखी न होते तो? अगर आप पहले से ही तृप्त होते तो आप खाने के माध्यम से खुशी नहीं ढूंढते। तो इतना तो पक्का है कि दुख है। पर दुख क्यों है? दिन भर में ऐसा क्या किया कि दुख मिला जिसे मिटाने या कम करने के लिए शाम को सुख चाहिए? बस, ठीक यहीं पर समस्या की जड़ है। 


दिन निरर्थक बीता, इसलिए दुख है। कोई सार्थक कर्म नहीं किया, इसीलिए दुख है। कुछ नया नहीं सीखा, बस जैसे-तैसे बिता दिया, घूम-फिरकर, व्यर्थ बातें सोच-सोचकर, या ऐसा काम करके जिसमें कोई गरिमा, कोई सार्थकता नहीं है। बीते दिन की व्यर्थता और निरर्थकता की टीस ही शाम को सुख और भोग के रूप में क्षतिपूर्ति की माँग करती है। यही आपकी अधिकतर इच्छाओं के पीछे की वजह होती है। यही आपके हमारे मन का हाल है। 


मन को कुछ करने के लिए चाहिए। खाली वो बैठ नहीं सकता, किसी की ओर तो उसे जाना है। कुछ तो चाहिए मन को, पर क्या? मन को कुछ ऐसा चाहिए जो उसकी सोच से आगे का हो। कुछ ऐसा सार्थक, ऐसा उत्कृष्ट जो क्षणिक सुख से ऊपर का हो, जिसके पास जाकर उसे सुकून मिल जाए, तृप्ति मिल जाए। जब मन को वो विराट मिल जाएगा जिसकी उसे तलाश है, जो उसे वास्तव में चाहिए, तब वो बाहर नहीं भागेगा। एक बार जीवन में सार्थकता आ गयी तो फिर उन इच्छाओं को नियंत्रित करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि भीतर-ही-भीतर, तलाश तो हम सबको उच्चतम की ही है, ऐसा कुछ जो हमारी चेतना को ऊँचाई दे सके। जब जीवन में वो आने लगता है जो ज़रूरी है, जिसका कुछ ऊँचा मूल्य और अर्थ है, तो वो सब जाने लगता है जो व्यर्थ है।